प्रिय साथियों ,
26 जनवरी का पवित्र दिन केवल एक तारीख नहीं है। यह दिन हमारे संविधान की ताकत, हमारे गणतंत्र की नींव और हमारे अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों की याद दिलाता है। मैं आज यहां उन विचारों को साझा कर रहा हूं, जो मेरे दिल में हैं और शायद उन शहीदों के भी थे, जिन्होंने अपना सब कुछ इस देश के लिए न्योछावर कर दिया।
हमारे देश को आज़ाद कराने का संघर्ष सिर्फ एक भूमि को स्वतंत्र कराने का संघर्ष नहीं था। वह संघर्ष था एक ऐसे भारत के लिए, जो न्याय, समानता और स्वतंत्रता का प्रतीक बने। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, और नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे वीरों ने अपने प्राणों की आहुति देकर यह दिखा दिया कि उनका सपना सिर्फ एक स्वतंत्र भारत नहीं, बल्कि एक सशक्त और न्यायप्रिय भारत का था।
लेकिन आज जब हम अपने आसपास देखते हैं, तो हमें खुद से यह सवाल करना चाहिए कि क्या हम उनके सपनों का भारत बना पाए हैं? क्या हर किसान, जो देश का पेट भरता है, आज संतुष्ट है? क्या हर मजदूर, जो हमारे उद्योगों की रीढ़ है, आज अपने अधिकारों को पा रहा है? क्या हर बच्चा, जो हमारा भविष्य है, आज शिक्षा के समान अवसर प्राप्त कर रहा है?
भगत सिंह ने कहा था, "इंकलाब ज़िंदाबाद!" उनका इंकलाब बंदूक और बम का नहीं था। उनका इंकलाब उस सोच के खिलाफ था, जो समाज में अन्याय और असमानता को बढ़ावा देती है। उनका सपना था एक ऐसा समाज, जहां किसी को भूखा न सोना पड़े, जहां हर व्यक्ति को उसकी मेहनत का सही फल मिले, और जहां धर्म, जाति या भाषा के आधार पर किसी के साथ भेदभाव न हो।
लेकिन आज जब मैं यह सोचता हूं, तो मन में एक सवाल उठता है—क्या हमने अपने शहीदों से किया वादा निभाया है? क्या हम वास्तव में उस गणतंत्र को जी रहे हैं, जो उन्होंने हमें सौंपा था?
गणतंत्र दिवस सिर्फ उत्सव का दिन नहीं है। यह आत्मनिरीक्षण का दिन है। यह वह दिन है, जब हमें अपने भीतर झांककर देखना चाहिए कि क्या हम अपने अधिकारों के साथ-साथ अपने कर्तव्यों को निभा रहे हैं? क्या हम उस क्रांति की मशाल को थामे हुए हैं, जिसे हमारे शहीदों ने जलाया था?
आज का समय बंदूक की नहीं, बल्कि विचारों की क्रांति का है। यह क्रांति हमें खुद से शुरू करनी होगी। हमें अपने समाज को शिक्षित करना होगा, लोगों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक करना होगा।
भगत सिंह आज होते, तो शायद यही कहते:
"मैंने आज़ादी के लिए जान दी, पर यह जिम्मेदारी तुम्हारी है कि उसे बनाए रखो। मैंने क्रांति की नींव रखी, अब तुम्हारा काम है कि उसे पूरा करो।"
आइए, हम सब यह प्रण लें कि हम उनके बलिदानों को व्यर्थ नहीं जाने देंगे। हम उनके सपनों का भारत बनाएंगे—एक ऐसा भारत जो सशक्त, न्यायपूर्ण और समान हो।
लहू से सींचा है इस धरती को हमने,
अब इसे बर्बाद नहीं होने देंगे।
सपनों का जो वादा किया शहीदों ने,
उसे अधूरा नहीं छोड़ेंगे।
जय हिंद! जय भारत!

नाइस विचार अजय भाई
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