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"मैं भगत सिंह बोल रहा हूँ।"

   

जब मैंने देश के स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया, तो मेरा उद्देश्य केवल ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकना नहीं था, बल्कि मेरे विचार इससे कहीं बड़े थे। मेरे लिए असली स्वतंत्रता सिर्फ राजनीतिक आज़ादी में नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग को समान अधिकार, सम्मान और अवसर देने में थी।


मेरी क्रांति सिर्फ अंग्रेजों को देश से बाहर करने की नहीं थी, बल्कि इसका उद्देश्य देश में एक सच्चे और आदर्श शासन व्यवस्था की स्थापना करना था। मैंने यह काम आपके लिए छोड़ा था कि आप लोग मेरे विचारों को आगे बढ़ाएं और समाज की कमियों को दूर करने के लिए एक सामाजिक क्रांति लाएं।


सामाजिक क्रांति से मेरा मतलब था—समाज में फैली असमानताओं और अन्याय के खिलाफ संघर्ष।

 यह सरकार के खिलाफ नहीं, बल्कि समाज में व्याप्त पुरानी सोच, प्रथाओं और रूढ़ियों के खिलाफ था। उस वक्त हमारे देश में जातिवाद, धार्मिक असहिष्णुता, आर्थिक असमानता और महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन जैसी गंभीर समस्याएं थीं, और आज भी हैं। इन्हें समाप्त करने के लिए एक सामाजिक क्रांति की आवश्यकता है, और यह क्रांति शस्त्रों की नहीं, विचारों की क्रांति होगी।


हमें अपने समाज के लोगों को शिक्षित करना होगा और उन्हें जागरूक करना होगा कि देश के विकास के लिए समाज में हर व्यक्ति को समान अधिकार मिले, चाहे वह गरीब हो, अमीर हो, या किसी भी जाति या धर्म से हो। सभी को बराबरी का दर्जा मिलना चाहिए, और यही समाज के विकास का असली मापदंड है।


हमारे समाज में शोषण भी गहराई से फैला हुआ है। मज़दूरों और किसानों का शोषण हो रहा है, उन्हें उनके काम का उचित मेहनताना नहीं मिल रहा। मेरी ख्वाहिश थी कि एक ऐसा समाज बने, जहां श्रमिकों, किसानों और गरीबों को उनके अधिकार मिलें और वे शोषण से मुक्त हो सकें।


महिलाओं को अपनी स्थिति सुधारने की दिशा में काम करना होगा। उन्हें शिक्षित और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना होगा, ताकि वे समाज में अपनी जगह बना सकें।


आज अगर मैं जीवित होता, तो मेरा संघर्ष यही होता। मैं उस समाज के खिलाफ खड़ा होता, जहां अमीर और गरीब के बीच की खाई लगातार बढ़ रही होती, जहां कुछ लोग सत्ता और धन के बल पर बाकी लोगों का शोषण कर रहे होते। मैं चाहता था कि समाज में हर किसी को न्याय मिले और हर कोई अपनी मेहनत के अनुसार अपने जीवन को बेहतर बना सके।


सामाजिक क्रांति का अर्थ केवल सरकार को बदलना नहीं था, बल्कि हमारी सोच, हमारे दृष्टिकोण और हमारे व्यवहार को बदलना था। जब तक हम खुद अपने भीतर के भेदभाव और असमानता को नहीं खत्म करेंगे, तब तक समाज में कोई असली परिवर्तन नहीं आ सकता।


हमारे समाज में एक समानता और न्याय का वातावरण तभी बनेगा जब हर व्यक्ति के दिल में बदलाव आएगा। यही असली क्रांति है—हमारे विचारों की क्रांति। यह तभी संभव है जब हम खुद अपने भीतर यह बदलाव लाएंगे।


अगर आज मैं ज़िंदा होता, तो मैं इसी सामाजिक क्रांति के लिए लड़ता – एक ऐसा समाज बनाने के लिए, जहाँ हर व्यक्ति को समान अधिकार और सम्मान मिले, और जहाँ कोई भी असमानता या शोषण न हो।




Ajaykvichar

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