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एक विचार से विचारधारा तक: भगत सिंह की आत्मकथा"

 मै भगत सिंह बोला रहा हूँ आज मैं आपको अपने बारे में बताना चाहता हूँ कि कैसे मैं एक व्यक्ति से व्यक्तित्व बना कैसे मेरे विचार एक विचारधारा के रूप में विकसित हुए।

 


मेरा जन्म 27 सितम्बर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा गांव में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है । मेरी माता का नाम विद्यावती था और मेरे पिता सरदार किशन सिंह एक उदार धार्मिक दृष्टिकोण वाले आर्यसमाजी थे । मेरे दादा जी भी आर्यसमाज के पक्के अनुयायी थे । उन्हीं की शिक्षाओं से प्रेरित होकर मैंने अपने जीवन को स्वतंत्रता के आदर्श के लिए समर्पित कर दिया ।


प्राथमिक शिक्षा पूरी करके मै DAV स्कूल में दाखिल हुआ और छात्रावास में रहने लगा।


 मै बहुत ही निर्भीक और जिज्ञासु स्वभाव का लड़का था ।

 ईश्वर के अस्तित्व में मेरा दृढ़ विश्वास था।

मै स्कूल में सुबह शाम की प्रार्थनाओं के अलावा घंटों गायत्री मंत्र का जप किया करता था ।


जब मैं 11 साल का था तब जलियांवाला बाग हत्याकांड के अमानवीय कृत्य ने मेरे मन में बहुत गहरा प्रभाव डाला और तभी से देश को आजाद कराने की तीव्र इच्छा मेरे अंदर उठने लगी ।



असहयोग आंदोलन के दौरान मैंने लाहौर के नेशनल कॉलेज में प्रवेश लिया। यहीं से मैंने ईश्वर, धर्म और सामाजिक विषयों पर गहन विचार करना आरंभ किया और अंततः स्वयं को नास्तिक घोषित कर दिया।



कॉलेज के ही दौरान मैं क्रांतिकारी दल में शामिल हो गया और दो प्रमुख नेताओं से मिला।


सबसे पहले मैं जिस नेता से मिला वो नास्तिक थे पर उनमें पूरी तरह से ईश्वर के अस्तित्व को इनकार करने का साहस नहीं था जब मैने उनसे ईश्वर के बारे में पूछा तो वो कहने लगे जब तुम्हारा मन करे ईश्वर का ध्यान कर लिया करो ।


दूसरे नेता जिनसे मै मिला माननीय शचींद्रनाथ सान्याल थे उनका ईश्वर में दृढ़ विश्वास था इन्होंने एक प्रसिद्ध पुस्तक बन्दी जीवन लिखी। 

इस समय तक क्रांतिकारी दल में ईश्वर के अस्तित्व से इनकार करने का विचार पैदा भी नहीं हुआ था।।



सबसे ज्यादा मै जिस क्रांतिकारी नेता से प्रभावित हुआ वो लाला लाजपतराय और चंद्रशेखर आजाद थे ।


अभी तक हम सिर्फ अनुयायी थे फिर जब काकोरी कांड के दौरान हमारे अधिकांश साथी पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए और चंद्रशेखर आजाद जी पुलिस से बचकर निकल गए तब पूरी जिम्मेदारी अपने कंधे पर लेने का समय आया ।


ईश्वर के अस्तित्व को नकारने और अपने तर्कशील स्वभाव के कारण मुझे दल में उपहास का पात्र बनना पड़ता था और दल के नेता भी मेरा मजाक उड़ाने लगे ।


यह मेरे जीवन में आया बहुत बड़ा क्रांतिकारी मोड था मेरे अंदर अध्ययन करने की तरंग उमड़ने लगी मैने ठान लिया अब मुझे अध्ययन करना है ताकि अपने विरोधियों के तर्कों का जवाब दे सकू 

अपने सिद्धांतों के पक्ष में अपने को तर्कों से लैश कर सकू ।


तब मैने 1924 से 1928 के बीच द्वारकादास लाइब्रेरी की किताबों से विस्तृत अध्ययन किया ।


द्वारकादास लाइब्रेरी के पुस्तकालयाध्यक्ष राजाराम शास्त्री बताते है उन दिनों भगत सिंह वस्तुतः किताबों को निगला करते थे ।


मेरे प्रिय विषय थे रूसी क्रांति , सोवियत संघ, आयरलैंड , फ्रांस तथा भारत का क्रांतिकारी आंदोलन , अराजकतावाद तथा मार्क्सवाद, लेनिन और दर्शन।


विस्तृत अध्ययन के पश्चात मेरे विचार स्पष्ट हुए और मैने खुद को तर्कों से लैश कर लिया ।


तब मैं एक क्रांतिकारी विचारधारा की ओर आगे बढ़ा 


क्रांति से मेरा मतलब है - वर्तमान व्यवस्था जो खुलेतौर पर अन्याय पर टिकी हुई है बदलनी चाहिए 

हमारा उद्देश्य अंततः एक ऐसी व्यवस्था बनाना था जिसमें सभी को सामाजिक आर्थिक राजनैतिक स्वतंत्रता मिले मानव के द्वारा मानव का शोषण न हो ।

संसाधनों में सर्वहारा वर्ग का स्वामित्व हो शासन व्यवस्था जनता के हाथों में आए।

क्रांति हमारा जन्मजात अधिकार है।

स्वतंत्रता सभी मनुष्यों का ऐसा जन्मसिद्ध अधिकार है जिसे कभी छीना नहीं जा सकता।। 


अब मैं यह तय कर चुका था कि मुझे अपने अपने जीवन को मानवता की हर संभव सेवा करते हुए अपने प्राणों को निछावर करना है यही मेरे जीवन का सर्वोच्च मूल्य है ।

जब तक कोई निम्न वर्ग है मै उसमें हु जब तक कोई अपराधी तत्व है मै उसमें हु जब तक कोई जेल में है मै उसमें हु ।

निरर्थक घृणा की खातिर नहीं , सम्मान , यश और आत्मप्रशंसा की खातिर नहीं बल्कि अपने ध्येय की पूर्ति की खातिर कुछ ऐसा करना हैं जो कभी भुलाया ना जा सके ।



मेरे लिए जिंदगी इतनी प्यारी और चैन इतना मीठा नहीं था कि बेड़ियों और दासता की कीमत पर उसे खरीद लेता।


 मुझे तो बस स्वतंत्रता या मौत चाहिए ।



मनुष्य को एक ही जीवन जीने को मिलता है उसे इस तरह जीना चाहिए कि मरते समय मन मे यह खेद उत्पन्न न हो कि मैने उसे व्यर्थ खो दिया 


लोक परलोक के हर स्वार्थ को मन से निकलने के बाद अब मुझे बस एक शानदार अंत वाला जद्दोजहद भरा जीवन चाहिए था इससे ज्यादा कुछ नहीं ।।



अभी तक मैं हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी (HRA) का सदस्य था जिसमें चंद्रशेखर आजाद जी थे हमारे संगठन का उद्देश्य देश को अंग्रेजो से आजाद कराना था ।

और अन्य सभी संगठनों की तरह इससे आगे की हमारी पार्टी की कोई योजना नहीं थी। 

इसलिए मैने पार्टी के नाम में समाजवादी शब्द जुड़वाया जो अब HSRA यानी हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी कहलाई इससे मेरा मकसद देश को अंग्रेजो से आजाद कराकर एक समाजवादी राष्ट्र बनाए से था जिसमें सब बराबर हो कोई ऊंच नीच न हो आर्थिक समानता हो धार्मिक आजादी हो ।


इस सपने को पूरा करने के लिए हमें साम्राज्यवाद के विरुद्ध एक युद्ध छेड़ना था जो तब तक चलता रहेगा जब तक कुछ शक्तिशाली व्यक्ति भारतीय जनता और श्रमिकों के आय के साधनों में एकाधिकार जमाए है फिर चाहे वो अंग्रेज हो या भारतीय ।


इसी दौरान लाललाजपतराय जी साइमन कमीशन का विरोध कर रहे थे जिसमें अंग्रजों ने उनके सिर पर लाठियों से वार किए जिससे लाला जी शहीद हो गए जिसका बदला लेने के लिए मैने अपने साथियों के साथ मिलकर एक अंग्रेज अधिकारी सांडर्स की गोली मारकर हत्या कर दी और पुलिस से बचकर फराहर हो गया। 


अब वक्त था 1929 का जब अंग्रेज सरकार पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल लाना चाहती थी जिससे वो दमन को और सख्त और कानूनी बना सके जो हमे पसंद नहीं आया और हमने बहरे अंग्रेजो को जगाने के लिए 8 अप्रैल 1929 को बटुकेश्वर दत्त के साथ केंद्रीय असेंबली की फर्श पर दो गैरघातक बम फेंके और साम्राज्यवाद मुर्दाबाद इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हुए पर्चे फेंके और खुद को गिरफ्तार करवा दिया ताकि मीडिया के द्वारा अपने विचारों को पूरे देश में फैला सकू और मजदूरों और किसानों को इस लड़ाई के लिए एक कर सकू ।



हमने एक योजना के तहत खुद को गिरफ्तार करवाया था हम ये जानते थे कि हमें फांसी की सजा होगी फिर भी हमने पूरे देश के क्रांतिकारी संगठनों को एक मंच पर लाने के लिए और जनता को जगाने के लिए यह योजना बनाई और अपना केस खुद लड़े ताकि अपने विचारों को लोगो तक पहुंचा सके ।


हमने जेल में भूख हड़ताल की क्रांतिकारियों साथियों को पत्र लिखे मीडिया में अपने बयान दिए जिससे पूरे देश में क्रांति की एक लहर फैल गई ।

सेंट्रल असेंबली केस में मुझे और बटुकेश्वर को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई और सैंडर्स मर्डर केस (लाहौर षडयंत्र केस) में भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई गई ।



इस सजा से हम बेहद प्रसन्न थे हमे पता था अब हमारे विचार लोगों के दिलो तक पहुंच गए है और हमने उनके हृदय में जगह बना ली है अब अगर ये हमे फांसी दे भी दे तो हम जनता के दिलो में अमर हो गए है और एक भगत सिंह को मारने पर हजारों भगत सिंह पैदा होंगे जो अंग्रेजी साम्राज्य को जड़ से उखाड़ कर फेंक देंगे ।




अगर मेरी शहादत से देश का युवा जागता है, तो मेरा बलिदान सफल है।


मैं मरा नहीं — मैं हर उस हृदय में जीवित हूँ, जो अन्याय के खिलाफ आवाज उठाता है।


भगत सिंह


              




Comments

  1. Super story hai ham sabhi ko follow karna chahiye Jay hind jay bharat Jay Bhagat Singh

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