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आसान नहीं है गांधी होना।

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आजादी की कीमत

 स्वतंत्रता का प्रतीक हमारा गौरव हमारा तिरंगा जब जब इसे लहराते देखता हु सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है कि हम आजाद है। पर एक सवाल उठता है मन में इस आजादी को पाने के लिए हमने तो कोई कीमत चुकाई नहीं फिर कैसे मिली हमे आजादी ? किसने दिया हमारे लिए अपने प्राणों का बलिदान..और क्यों? क्या रिश्ता है हमारा उनसे ? आज स्वतंत्रता दिवस है एक अवसर है ये जानने का की कैसे मिली है हमे ये आजादी किसने हमारे लिए अपना जीवन गंवा दिया हंसते हंसते सीने में गोलियां खाई, फांसी के फंदे को चूम लिया तो किसी ने अपनी जवानी, अपने सपने, सब कुछ मातृभूमि के चरणों में अर्पित कर दिया। कैसे थे वो लोग जिन्हें मालूम था कि वो कभी आजाद भारत में सांस नहीं ले पाएंगे फिर भी आजादी के लिया अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया ।। याद रखो… ये आज़ादी हमें भीख में नहीं मिली, ये क्रांति की ज्वाला में तपे खून और आंसुओं की अमूल्य विरासत है। इसे खोना मत…! चाहे अपनी लहू की आखिरी बूंद भी देनी पड़े, चाहे अपने सपनों की आखिरी किरण भी देश पर न्यौछावर करनी पड़े। आओ आज प्रतिज्ञा लें— इस तिरंगे को कभी झुकने नहीं देंगे, भारत को कभी रुकने नहीं देंगे, इस आ...

मैं महात्मा गांधी बोल रहा हूँ

नमस्कार, मेरे प्यारे भारतवासियों, मैं मोहनदास करमचंद गांधी – हां वही जिसे आपने कभी बापू कभी महात्मा और कभी राष्ट्रपिता कहा  आज मैं आपको कोई भाषण देने नहीं आया हूं। मैं आया हूं अपना मन खोलने, अपनी बात कहने, और आपके मन में मेरे बारे में जो सवाल हैं – उन सवालों के जवाब देने। तुमने पढ़ा होगा कि भारत 1947 में आज़ाद हो गया। अंग्रेज़ चले गए, झंडा बदल गया, सत्ता बदल गई। पर मैं पूछना चाहता हूं – क्या तुम सच में आज़ाद हो? क्या तुम अपने भीतर से आज़ाद हो? क्या तुम अपने डर, अपनी नफरत, अपनी गुलामी की आदत से मुक्त हो? अगर नहीं, तो आज़ादी अधूरी है।  मैं कहता रहा हूं – स्वराज मतलब सिर्फ सरकार का बदलाव नहीं, ये आत्मा की आज़ादी है।  जब हर इंसान खुद पर शासन कर सके, अपने सही-गलत का निर्णय खुद कर सके, अपने लालच और ग़ुस्से पर काबू पा सके, तभी असली आज़ादी होगी। मैंने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी – पर तलवार से नहीं, बंदूक से नहीं, नफरत से नहीं। मैंने लड़ाई लड़ी सच्चाई से, प्रेम से, और बिना हिंसा के। कुछ लोग कहते हैं – अहिंसा से क्या होता है? जवाब है – अहिंसा से ही मन बदलता है। तलवार शरीर को हरा सकती ह...

लोकधर्म बनाम गीता का धर्म

 जब हम जैसे है वैसे ही बने रहना चाहते है तब हम धर्म को भी अपने हिसाब से बदलने लगते है।  और यह धर्म बदलते बदलते इतना विकृत हो जाता है कि अपनी मूल सच्चाई और आध्यात्मिक शक्ति को खो बैठता है, और कहीं कहीं यह सच्चे धर्म के बिल्कुल विपरीत हो जाता है   यही विकृत धर्म “लोकधर्म” कहलाता है जिसको हम अपना धर्म कहते हैं जो हमे बाह्य आडंबरों, सामाजिक रूढ़ियों और खोखली परंपराओं के द्वारा सिखाया जाता है। लोकधर्म समाज में जाति-भेद, कर्मकांड, बाह्य आडंबर और परंपरागत रीतियों में देखा जाता है।  यह धर्म नहीं, धर्म का मुखौटा है — जिसमें धर्म के नाम पर भेदभाव, हिंसा, पाखंड और संकीर्णता को पोषित किया जाता है। ऐसे तथाकथित धार्मिक वातावरण में मनुष्य धर्म से नहीं, बल्कि उसके नाम पर बनी परछाइयों से जुड़ता है। यही कारण है कि समाज में धर्म के नाम पर लड़ाइयां और भेदभाव बढ़ता जाता है। सच्चा धर्म सनातन है। "सनातन" का अर्थ है — जो सदा से था और सदा रहेगा , जो सर्वकालिक, सार्वभौमिक और शुद्ध है। सच्चा धर्म मनुष्य को उसके विकारों से मुक्त करता है, आत्मा को शुद्ध करता है और उसे एकमात्र ईश्वर से...

एक विचार से विचारधारा तक: भगत सिंह की आत्मकथा"

 मै भगत सिंह बोला रहा हूँ आज मैं आपको अपने बारे में बताना चाहता हूँ कि कैसे मैं एक व्यक्ति से व्यक्तित्व बना कैसे मेरे विचार एक विचारधारा के रूप में विकसित हुए।   मेरा जन्म 27 सितम्बर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा गांव में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है । मेरी माता का नाम विद्यावती था और मेरे पिता सरदार किशन सिंह एक उदार धार्मिक दृष्टिकोण वाले आर्यसमाजी थे । मेरे दादा जी भी आर्यसमाज के पक्के अनुयायी थे । उन्हीं की शिक्षाओं से प्रेरित होकर मैंने अपने जीवन को स्वतंत्रता के आदर्श के लिए समर्पित कर दिया । प्राथमिक शिक्षा पूरी करके मै DAV स्कूल में दाखिल हुआ और छात्रावास में रहने लगा।  मै बहुत ही निर्भीक और जिज्ञासु स्वभाव का लड़का था ।  ईश्वर के अस्तित्व में मेरा दृढ़ विश्वास था। मै स्कूल में सुबह शाम की प्रार्थनाओं के अलावा घंटों गायत्री मंत्र का जप किया करता था । जब मैं 11 साल का था तब जलियांवाला बाग हत्याकांड के अमानवीय कृत्य ने मेरे मन में बहुत गहरा प्रभाव डाला और तभी से देश को आजाद कराने की तीव्र इच्छा मेरे अंदर उठने लगी । असहयोग आंदोलन के दौरान मैंने लाहौर के नेशनल...

मेरे जीवन के तीन उद्देश्य जो मुझे भगत सिंह ने बताए

 प्रिय मित्र अजय  तुमने मुझसे पूछा था मुझे अपने जीवन का उद्देश्य क्या बनाना चाहिए मुझे ये देखकर बहुत खुशी हुई कि तुम अपने जीवन के प्रति सजग हो यही तो एक सच्चे युवा की पहचान है जो केवल जीना ही नहीं, बल्कि कुछ महत्वपूर्ण और सच्चा करना चाहता है।  मैं अपने अनुभव और विचारों के आधार पर तुम्हें तीन ऐसे उद्देश्य बताना चाहता हूँ, जो तुम्हारे जीवन को न केवल गहराई देंगे, बल्कि समाज और आत्मा दोनों के लिए उपयोगी सिद्ध होंगे: 1. समाज-सुधार और जन-जागरण अजय, मैंने अपने जीवन को देश और समाज के लिए समर्पित किया क्योंकि मुझे लगता था कि जब तक समाज अज्ञान, अन्याय और शोषण की जंजीरों में जकड़ा है, तब तक व्यक्ति की मुक्ति अधूरी है। तुम भी अपने ज्ञान, समय और ऊर्जा को इस दिशा में लगाओ कि लोग अपने अधिकार, कर्तव्य, और मानवीय मूल्यों को जान सकें।  "क्रांति सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं, चेतना का परिवर्तन है।" तुम्हारा जीवन समाज के पीड़ितों के लिए आवाज़ बने, अन्याय के विरुद्ध एक विचार बने—यही एक क्रांतिकारी का वास्तविक जीवन होता है। 2. परिवार के प्रति कर्तव्य जो मनुष्य अपने परिवार की ज़िम्मेदारियों से...

मैंने कानून की पढ़ाई क्यों चुनी

मैंने कानून क्यों चुना? यह सवाल हर चेहरा मुझसे करता है। क्या मैं वकील बनना चाहता हूँ? या बस डिग्री लेकर आगे बढ़ जाना चाहता हूँ? नहीं। मैं बताता हूँ — मैंने कानून क्यों चुना। मैंने कानून इसलिए नहीं चुना कि मुझे कोर्ट में ऊँची आवाज़ में बहस करनी थी, न ही इसलिए कि मुझे कोट पहनकर लोगों से सम्मान चाहिए था। मैंने इसे इसलिए चुना — क्योंकि मुझे उस मज़दूर के लिए लड़ना था जिसकी शिकायत कभी दर्ज ही नहीं हुई। क्योंकि मुझे उस महिला के अधिकारों के लिए आवाज़ उठानी थी जिसे हमेशा कर्तव्यों में बाँधकर रखा गया, पर कभी उसे उसके अधिकार नहीं बताए गए। मुझे उस किसान की पीड़ा को समझना था जिसने कभी 'अनुच्छेद' शब्द तक नहीं सुना, पर हर नीति का भार उसी की पीठ पर डाला गया। मैंने कानून इसलिए नहीं चुना कि मुझे अमीर बनना था, मैंने इसे इसलिए चुना क्योंकि मुझे गरीबी की जड़ों को पहचानकर उन्हें जड़ मिटाना है। संविधान मेरे लिए एक किताब नहीं, एक जीवंत दस्तावेज़ है — जिसके हर अनुच्छेद में मैं अपने समाज का चेहरा देखता हूँ। मैंने कानून इसलिए चुना क्योंकि मुझे नारे नहीं, नीतियाँ बदलनी हैं; भाषण नहीं, व्यवस्था बदलनी है। म...

"मैं भगत सिंह बोल रहा हूँ।"

    जब मैंने देश के स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया, तो मेरा उद्देश्य केवल ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकना नहीं था, बल्कि मेरे विचार इससे कहीं बड़े थे। मेरे लिए असली स्वतंत्रता सिर्फ राजनीतिक आज़ादी में नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग को समान अधिकार, सम्मान और अवसर देने में थी। मेरी क्रांति सिर्फ अंग्रेजों को देश से बाहर करने की नहीं थी, बल्कि इसका उद्देश्य देश में एक सच्चे और आदर्श शासन व्यवस्था की स्थापना करना था। मैंने यह काम आपके लिए छोड़ा था कि आप लोग मेरे विचारों को आगे बढ़ाएं और समाज की कमियों को दूर करने के लिए एक सामाजिक क्रांति लाएं। सामाजिक क्रांति से मेरा मतलब था—समाज में फैली असमानताओं और अन्याय के खिलाफ संघर्ष।  यह सरकार के खिलाफ नहीं, बल्कि समाज में व्याप्त पुरानी सोच, प्रथाओं और रूढ़ियों के खिलाफ था। उस वक्त हमारे देश में जातिवाद, धार्मिक असहिष्णुता, आर्थिक असमानता और महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन जैसी गंभीर समस्याएं थीं, और आज भी हैं। इन्हें समाप्त करने के लिए एक सामाजिक क्रांति की आवश्यकता है, और यह क्रांति शस्त्रों की नहीं, विचारों की क्रांति होगी। हमें अप...

26 January par krantikari vichar

 प्रिय साथियों , 26 जनवरी का पवित्र दिन केवल एक तारीख नहीं है। यह दिन हमारे संविधान की ताकत, हमारे गणतंत्र की नींव और हमारे अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों की याद दिलाता है। मैं आज यहां उन विचारों को साझा कर रहा हूं, जो मेरे दिल में हैं और शायद उन शहीदों के भी थे, जिन्होंने अपना सब कुछ इस देश के लिए न्योछावर कर दिया। हमारे देश को आज़ाद कराने का संघर्ष सिर्फ एक भूमि को स्वतंत्र कराने का संघर्ष नहीं था। वह संघर्ष था एक ऐसे भारत के लिए, जो न्याय, समानता और स्वतंत्रता का प्रतीक बने। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, और नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे वीरों ने अपने प्राणों की आहुति देकर यह दिखा दिया कि उनका सपना सिर्फ एक स्वतंत्र भारत नहीं, बल्कि एक सशक्त और न्यायप्रिय भारत का था। लेकिन आज जब हम अपने आसपास देखते हैं, तो हमें खुद से यह सवाल करना चाहिए कि क्या हम उनके सपनों का भारत बना पाए हैं? क्या हर किसान, जो देश का पेट भरता है, आज संतुष्ट है? क्या हर मजदूर, जो हमारे उद्योगों की रीढ़ है, आज अपने अधिकारों को पा रहा है? क्या हर बच्चा, जो हमारा भविष्य है, आज शिक्षा के समान अवसर प्राप्त कर रहा है? भगत स...